इन दिनों कुदरत का भी अलग ही सरूर है,
चहक रही है अलग ही धुन जब इंसान उससे दूर है,
खेलता था जो उससे खेल आज वही मज़बूर है,
करता आ रहा जो परिंदों को कैद,
आज चार दीवारी में हो बैठा है खुद ही कैद,
चांद पर एक दिन जमाएं थे जिसने पैर,
एक छोटे-से वायरस ना बक्शी उसकी ख़ैर,
जब अपने मतलब के लिए इंसान ने किया सब बर्बाद,
हिला दी कुदरत की बुनियाद,
कुछ ना बचा जब तो काम आई सिर्फ फ़रियाद,
अब भी सब बिगड़ा नहीं,
साथ था जो सब कुछ छुटा नहीं,
कल एक दिन नया आएगा,
हमारी गलतियां हमको सिखाएगा,
समय रहते सीखले नादान नया सवेरा जल्दी ही आएगा.....
चहक रही है अलग ही धुन जब इंसान उससे दूर है,
खेलता था जो उससे खेल आज वही मज़बूर है,
करता आ रहा जो परिंदों को कैद,
आज चार दीवारी में हो बैठा है खुद ही कैद,
चांद पर एक दिन जमाएं थे जिसने पैर,
एक छोटे-से वायरस ना बक्शी उसकी ख़ैर,
जब अपने मतलब के लिए इंसान ने किया सब बर्बाद,
हिला दी कुदरत की बुनियाद,
कुछ ना बचा जब तो काम आई सिर्फ फ़रियाद,
अब भी सब बिगड़ा नहीं,
साथ था जो सब कुछ छुटा नहीं,
कल एक दिन नया आएगा,
हमारी गलतियां हमको सिखाएगा,
समय रहते सीखले नादान नया सवेरा जल्दी ही आएगा.....